चतुर्दश पदी
चतुर्दश पदी
(साजन)
साजन गया विदेश जब, घर का कोना सून।
आँखों से झर-झर बहत, झरना दूने-दून।।
साजन बिन तड़पत तन-मन-उर।
अति उदास है नित अंतःपुर।।
साजन जीवन की बगिया है।
बिन साजन यह मन जोगिया है।।
सूख गया मन का चमन, सूना घर का द्वार।
मचा हुआ कोहराम है, दूर हुआ है प्यार।।
बैठा मन का हर कोना है।
हुआ हराम आज सोना है।
समझाने पर नहीं मानता।
बुधि-विवेक को नहीँ जानता।।
साजन!आओ, मत विदेश रह।
सजनी संग सदैव रहन चह।।
Milind salve
12-Feb-2023 03:44 PM
बेहतरीन
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पृथ्वी सिंह बेनीवाल
12-Feb-2023 02:48 PM
बहुत खूब
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